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जालंधर के उद्योगपति ने बनाया 24 घंटे में कंपोस्ट बनाने वाला पहला प्लांट, मशीन बना छेड़ी कचरे के खिलाफ लड़ाई

जालंधर के उद्योगपति ने कूड़ा प्रबंधन के लिए तीन वर्ष तक जन आंदोलन चलाया। नगर निगम ने सुनवाई नहीं की तो उन्होंने कूड़े को ठिकाने लगाने वाली मशीन तैयार की। प्रधानमंत्री कार्यालय ने उन्हें कचरा प्रबंधन के लिए अवार्ड दिया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 03 May 2022 05:36 PM (IST)Updated: Tue, 03 May 2022 05:36 PM (IST)
जालंधर के उद्योगपति द्वारा तैयारी की गई कचरा प्रबंधन मशीन। जागरण

मनोज त्रिपाठी, जालंधर। किसी सुधार के लिए जब लीक से हटकर कुछ कार्य होता है तो उसकी राह सुगम नहीं होती। अवरोध जिन्हें निराश नहीं कर सकते, वे कुछ अलग करके दिखा ही देते हैं। यह एक ऐसे ही शख्स का किस्सा है।

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शहर में लगातार बढ़ते जा रहे कूड़े के ढेरों को खत्म करने व कचरा प्रबंधन को सही तरीके से लागू करने के लिए जालंधर के उद्योगपति ने पहले तीन साल तक जनांदोलन चलाया, लेकिन नगर निगम जालंधर ने सुनवाई नहीं की तो उन्होंने कूड़े को ठिकाने लगाने वाली मशीन ही तैयार कर डाली।

चार साल के शोध व व्यावहारिक ज्ञान लेकर अजय पलटा ने रबड़ के पारिवारिक उद्योग को बंद करके कचरा प्रबंधन की मशीन बनाकर जालंधर निगम व पंजाब सरकार को सौंप दी। यहां पर मशीन के सफल परीक्षण के बाद भी जब निगम व पंजाब सरकार ने उनकी मशीन को मान्यता नहीं दी, तो उन्होंने दिल्ली जाने का फैसला किया।

एक साल की मेहनत रंग लाई और आखिरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यालय ने 2017-18 में न्यू इंडिया अटल चैलेंज अवार्ड स्कीम के तहत उनकी मशीन को मान्यता दी। आज उनकी मशीन पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद और कस्तूरबानगर डंप से कचरे की सफाई करने में जुटी है। मशीन के प्रदर्शन को देखने के बाद पीएमओ की तरफ से उन्हें अवार्ड भी दिया गया।

अजय पलटा अपने प्रयोगों से लोगों की जिंदगी को सरल बनाने में लगे हैं। दैनिक जागरण की ओर से जालंधर में लगातार बढ़ते जा रहे कूड़े के ढेरों की समस्या को उठाने से पलटा प्रेरित हुए और सहारा यूथ इंडिया वेलफेयर सोसायटी का गठन करके जनांदोलन चलाया।

सोसायटी के सदस्यों ने जालंधर को कचरा मुक्त करने की लड़ाई शुरू कर दी, लेकिन नगर निगम के उच्च धिकारियों ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इसके बाद अजय पलटा ने कचरा प्रबंधन की मशीन बनाने का प्रयोग शुरू कर दिया। इसके लिए ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करने वाले अजय ने तीन वर्ष तक जालंधर के वरयाणा डंप में खराब पड़ी मशीन का अध्ययन किया। फिर इंटरनेट पर जहां भी कचरा प्रबंधन पर बढिय़ा काम हो रहा है, उनके माडल का अध्ययन किया।

इसके बाद अपनी वर्कशाप पर कुशल कारीगरों व विशेषज्ञों की मदद से डेढ़ करोड़ की लागत से कचरे का निस्तारण करने की मशीन तैयार की। इस पर डेढ़ करोड़ रुपये का खर्च आया।

उन्होंने इस मशीन को नगर निगम जालंधर को सौंपा, तो निगम ने वरयाणा स्थित कूड़े के डंप पर मशीन लगाने की जगह दे दी। तीन महीनों में जब मशीन ने डंप का काफी कूड़ा खत्म कर दिया तो निगम ने कहा अब मशीन ले जाओ। इसके बाद उन्होंने प्रदेश सरकार से भी संपर्क किया, लेकिन सरकार की तरफ से भी कोई सकारात्मक पहल नहीं दिखी।

इससे निराश होकर पलटा दिल्ली पहुंच गए। वहां एक साल तक मशीन के इस्तेमाल के लिए प्रयास करते रहे। बाद में दिल्ली कैंट बोर्ड ने उनकी मशीन के प्रदर्शन को देखा और इस्तेमाल की इजाजत दी। अभी कस्तूरबा नगर व जाफराबाद डंप पर उनकी मशीन से कचरा प्रबंधन किया जा रहा है। यह मशीन 24 घंटे में ही कूड़े से कंपोस्ट बनाकर तैयार कर देती हैं। यह मशीनें केंद्र के सहयोग से विशेष प्रोजेक्ट के तहत लगाई गई हैं।

प्रधानमंत्री कार्यालय की टीम ने जब इस मशीन का प्रदर्शन देखा तो इससे प्रभावित हुए और अजय पलटा को न्यू इंडिया अटल चैलेंज स्कीम के तहत अवार्ड दिया। मशीन की खासियत देखने के बाद अमेरिका से भी उन्हें आफर दिया गया, लेकिन पलटा कहते हैं कि मेरा लक्ष्य इससे कमाई करना नहीं बल्कि समस्या को दूर करना है। अभी तक वह पांच-छह मशीनें बना चुके हैं।

कीड़े से मिली प्रेरणा

पलटा बताते हैं कि मशीन का नाम क्या रखा जाए, इसे लेकर काफी रिचर्स की गई। गोबरैला नाम का एक कीड़ा हर जगह पाया जाता है। वह पूरे दिन कचरे को खत्म करने का काम करता था। उसका वीडियो देखने के बाद ही मशीन बनाने का ख्याल आया था कि जब एक छोटा सा कीड़ा कचरा प्रबंधन कर सकता है तो मशीन क्यों नहीं।

पैसे की बचत

अजय कहते हैं कि अगर निगम इस मशीन का इस्तेमाल कूड़े के डंप पर करता है तो ढुलाई पर होने वाले खर्च से करोड़ों रुपये बचाए जा सकते हैं। इससे बनने वाली खाद की बिक्री से कमाई भी हो सकती है। डंपिंग कास्ट, कलेक्शन कास्ट व ट्रांसपोर्टेशन कास्ट खत्म की जा सकती है।

मशीन की खासियत

  • 10 फीट चौड़ी व 40 फीट लंबी जगह पर इसे लगाया जा सकता है।
  • रोजाना 10 से 30 टन कूड़े को प्रोसेस कर सकती है।
  • 25 हजार से 75 हजार तक की आबादी के लिए एक मशीन पर्याप्त है।
  • यह मशीन गीले कूड़े को प्रोसेस करके उसे सुखाकर खाद बना देती है।
  • मशीन प्लास्टिक को अलग करके बाहर निकाल देती है।
  • मशीन सालिड वेस्ट को प्रेस करके इसका फैलाव 80 प्रतिशत तक कम कर देती है।
  • एक टन कूड़े को खत्म करके उससे खाद बनाने में 950 रुपये की लागत आती है।
  •  मशीन को चलाने के लिए बिजली की जरूरत होती है।
  • 10 टन के प्लांट में 100 यूनिट बिजली की खपत 24 घंटे में होती है।

ऐसे काम करती है मशीन

  • पहले कूड़े की छंटाई करती है। पालिथीन व अन्य सालिड कूड़े को अलग-अइलग करती है।
  • गीले कूड़े में नेचुरल तरीके से मेटाबोलिज्म से हीट बनती है, यही हीट उसे बायो ड्राइ कर देती है
  • कूड़े में मौजूद बैक्टीरिया कार्बन को खा जाते हैं उसके बाद कूड़े को बुरादे से शेप में मशीन सुखाकर बाहर निकाल देती है।
  • 21 दिन बाद इस बुरादे का इस्तेमाल कंपोस्ट खाद के रूप में कहीं भी किया जा सकता है।

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